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किम चान्ग - इन फिलॉसफी ऑफ प्रैक्टिस अकादमी

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मौलिकता

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मौलिकता मेरा अस्तित्त्व और मेरा जीवन है
जब तक मनुष्य निरंतर एक आसान और छिछले विचार का अनुकरण और नकल करते हैं और जब तक मनुष्य जकली सामग्री नियंत्रण के तहत हैं, वे मौलिकता और सोचने की क्षमता से पूरी तरह से वंचित हो जाएँगे।
मनुष्य किसी भी चीज के लिए और हर मामले के लिए आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता, और आत्मसम्मान की हानि से अक्षम हो जाएगा।
संपन्नता के साथ मौलिकता व्यक्ति की मूल अभिव्यक्ति है जो केवल और केवल प्रामाणिक सिद्धांत पर आधारित है। यह सृजन का आनंद है जो सत्य की लक्षय रखने और सत्य का अभ्यास करने के समर्पित प्रयास के साथ सत्य की खोज करते हुए पूरा किया जा सकता है।
यह मूल और सबसे कीमती मानसिक गतिविधि है।
मौलिकता खूले दिल से पनपती है, एक शांत मन और रचनात्मक शक्ति की नींव पर बिना किसी सीमा के साथ, और भविष्य के लिए चमकने वाली एक मूल और अग्रणी मानसिकता के साथ; यह सब वास्तव में निर्दोष दिमाग से होता है जिसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा स्वयं की शक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
जीवन आगे बढ़ता है और दुनिया की ओर खूले दिल और आत्मा की खिड़की से साथ निरंतर, अंतहीन, और ठोस सच्चाई की ओर ईमानदारी से आगे बढता है, और हम अपने आप को अनूठे और मूल पर आधारित सत्य की पूर्णता के साथ अव्यवस्थित रूप से बड़ी और अंतहीन असीम जगह में पाते हैं, एकमात्र प्रकार का प्रामाणिक सिद्धांत जो भविष्य को उज्ज्वल और चमकदार बना देगा।
यह सबसे कीमती है।
यह एकमात्र प्रकार है जो उपलब्ध है।
◎ सत्य को चरम और निरंतर और अभेद्य मन की स्थिति तक आगे बढ़ाने के लिए अभ्यास की शक्ति प्राप्त करना
◎ जीवन को चरम और निरंतर और अभेद्य मन की स्थिति तक आगे बढ़ाने के लिए अभ्यास की शक्ति प्राप्त करना
◎ शांति को चरम और निरंतर और अभेद्य मन की स्थिति तक आगे बढ़ाने के लिए अभ्यास की शक्ति प्राप्त करना

सत्य के लिए केवल एक रास्ता लेने की भावना को महसूस करने के लिए एक दृढ़ विश्वास और कभी न मुडनेवाले तथा दृढ संकल्प के साथ; समय के परिवर्तनों द्वारा न बहे जाने की अवस्था; एक जिद्दी मानसिक शक्ति के माध्यम से प्राप्त मन और आत्मा की निरंतर और अपूर्ण स्थिति के साथ जो व्यक्ति के जीवन में कभी भी, बिलकुल भी नहीं, सदा के लिए और अपरिवर्तनीय रूप से नहीं बदलेगी; व्यक्ति के मन के साथ उसके समग्र जीवन के दौरान भक्ति के साथ; व्यक्ति को प्रतिज्ञाओं को सार्थक बनाना चाहिए और न्यायपूर्ण तथा कठोरता पूर्वक उनका अभ्यास करना चाहिए।